मेरे बॉयफ्रेंड को आजकल एक नया बुखार चढ़ा है - वो अशलील फिल्में देखता है और चाहता है कि हम वो सब करे जो उनमें होता है। मुझे नहीं लगता की मैं यह कोशिश करना चाहती हूँ, क्युकी मुझे नहीं लगता की यह सब मुमकिन है, है क्या? मेरी मदद कीजिये ,मैं नहीं चाहती कि हमारा प्यार भरा रिश्ता सेक्स की क़ुरबानी चढ़ जाए!

आंटी जी कहती है...ये मेरी पुत्तर , कितनी कमाल की बात कह गयी तू आखिर..."सेक्स के चक्कर में प्यार खोना।" क्या यह दोनों एक दुसरे के पूरक है या फिर एक दूसरे से बिलकुल अलग ? चल आ, इस बारे में थोड़ी बात करे...
वैसे बेटा जी, उसके पक्ष में, मैं एक बात कहना चाहती हूँ। उसने सिर्फ एक सुझाव रखा है ना, वो तुझे मज़बूर तो नहीं कर रहा...है ना? वो सिर्फ कह रहा है की "चलो इसे आज़मा कर देखते है।" वो ऐसा बिलकुल नहीं कह रहा है कि "नहीं तुम्हे करना ही होगा "है की नहीं?

हालाँकि वो इस बात से पूरी तरह अनभिज्ञ है कि इसके बारे में तू क्या सोचती हो। क्या वो जानता है कि तू कितनी दुविधा और परेशानी की स्थिति में है ? अगर हाँ तो शायद उसे थोड़ा पीछे हट जाना चाहिए, क्यूँ ?

सबके लिए नहीं
देख, यह बात एक आधारभूत सवाल खड़ा करती है: कि ब्लू फिल्म या अशलील फिल्मो से क्या उद्देश्य हासिल होता है? एक बात तो पक्की है, कि अशलीलता किसी लेबल के साथ नहीं आती, इससे हमें नयी जानकारी और सुझाव ज़रूर मिलते है लेकिन उनमे से कई बकवास और झूठ भी होते है। तो यह बात साफ है कि अशलील फिल्मो का यही एकमात्र उद्देश्य नहीं है।

इस बात में कोई दो राय नहीं की यह सब मज़ेदार, रोमांचकारी और कामोत्तेजक लगता है, और इससे बढ़िया कोई बात नहीं अगर इसका इस्तेमाल आपकी शर्म हटाने और सम्भोग को और मसालेदार बनाए के लिया किया जाये...मैं इससे पूरी तरह सहमत हूँ। लेकिन, सबकी अपनी निजी राय होती है और ज़रूरी नहीं सबको इसमें रूचि हो। यह एक व्यक्तिगत सोच की बात है और सभी लोगो को यह पसंद आये, ऐसा बिलकुल ज़रूरी नहीं पुत्तरI

एक और बात, अधिकतर पोर्न फिल्मो में महिलाओ को बहुत ही अपमानजनक तरीके से प्रस्तुत किया जाता है, यही कारण है की ज़्यादातर औरतें इसे अपनी पसंद के अनुरूप नहीं पाती है। हालाँकि ऐसी फिल्में भी बनती हैं जो की महिलाओ को अच्छी लग सकती है।

अब तेरे सवाल पर आते है कि क्या इसकी नकल करना मुमकिन है? क्या हम वो सब कर सकते है जैसा इसमें दिखाया जाता है? यह हाँ भी है और नहीं भी...देख पुत्तर, आखिरकार यह है तो फिल्म ही।

ऐसा तो नहीं है कि अपनी असल ज़िंदगी में आप पेड़ो के इर्द गिर्द घूमते हुए गाने गाते हो, चलती हुई रेलगाड़ी से छलांग लगा देते हो, किसी दीवार से टकरा के वापस खड़े हो जाते हो या फिर किसी चलती हुई पानी की नौका पर कूद जाते होI तू जानती है की असल ज़िन्दगी में ऐसा कुछ नहीं होता - होता है क्या?

नहीं बेटा जी, ऐसा नहीं होता। यह सिर्फ फिल्मो में होता है। और यही बात अशलील फिल्मो पर भी लागू होती है।

इनमे अगर कुछ असली होता है तो वो यह कि जो भी आप पर्दे पर देखते है वो असली लोगो द्वारा किया जा रहा होता है। इस बात की भी संभावना है कि इनमे दिखाई गयी कई बाते फिल्मांकन और सम्पादन के द्वारा ही मुमकिन होती है, चिपकाना और लगाना समझती है ना तू? और मेरी जान वो असल ज़िंदगी में तो हो नहीं सकता।

और हाँ, एक और बात, वो भारी-भरकम ,सुडौल वक्ष और भीमकाय तने हुए शिष्न जो पर्दे पर दिखते है, ज़रूरी नहीं कि 'वास्तविक' हो। ऐसी फिल्मो में काम करने वाले अधिकतर लोग इसके लिए शल्य चिकित्सा का सहारा लेते है। तो तुझे उनके गुप्तांग देख कर खुद अपने शरीर को लेकर संकोची होने की ज़रुरत कतई नहीं है।